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-नित छंद-

-नित छंद- बारह के भार धरत । सुग्घर नित छंद बनत लघु गुरू या नगण धरे । चरणन के अंत करे जइसे- पइसा जग मा बड़का । पइसा जीवन तड़का रिश्ता नाता पइसा । करव बुता जस भइसा नीत-रीत संग घरव । काम-बुता अपन करव बिना काम कहां जगत । दुख पीरा रहय फकत

-लीला छंद-

-लीला छंद- बारह के धरत भार । लेवव लीला सवार चरण अंत जब जभान । तब लीला छंद मान जइसे- भज ले मन राम-राम । दुनिया के करत काम कर्म जगत मा प्रधान । जानव मानव सुजान चाल चलन रखव नेक । कहय राम गोठ नेक राम संग राम गोठ । अंतस भर रहब पोठ

-ताण्डव छंद-

-ताण्डव छंद- धरय भार बारा जब । छंद बने तांडव तब शुरू आखिर मा लघु धर । ताण्डव ला सुग्घर कर जइसे- कहय सूत शौनक सुन । भगवत पुराण के गुण सुने भर मा मिल जात । प्रभु के सब भक्ति पात सुनत भागवत पुराण । मन होय गंग समान डर-भय कुछ ना बाचय । जग मा कोनो जांचय कटय सब माया फाँस । मिलय प्रभु भक्ति उजास ऋषि शौनकमन पूछँय । मन प्रभु मूरत गूथँय प्रथम बार ये पुराण । पढ़े हे कोन सुजान अउ आघू कोन धरिस । जग येला कोन भरिस

-तोमर छंद-

-तोमर छंद- बारह म तोमर छंद । होथे सुजानुक चंद रखले पताका अंत । जस रखे तुलसी संत जइसे- हृदय मा ईश्वर वास । देखेंव आत्म प्रकाश ईश्वर के दिव्य रूप । सकल सृष्टि के सरूप जेखर रंग ना रूप । चराचर के जे भूप बिना आँखी के देख । बिना कान के सरेख अब्बड़ मजा मैं पाँव । मन मा मूरत बसाँव जेने खाय पतिआय । बाकी मनन बतिआय मोर मन गोतो खाय । ईश्वर सरूप बसाय

-भव छंद-

-भव छंद- भव मा भार ग्यारा । जग ला लगय प्यारा आखिर दीर्घ भरथे । यगण घला भव रथे जइसे- व्यास कला रूप हे । अपने मा अद्भूत हे वो तीनों काल ला। जानय हर हाल ला अपन दृश्टि खोल के । देखय कुछु बोल के लोग समय फेर मा । करय धरम ढेर मा वेद ज्ञान भुलाये । अपन ज्ञान लमाये मनखे धरय रद्दा । छोड़य काम भद्दा अइसे वो सोच के । बात सबो खांच के वेद मन ल बाँट के । अलग करिस छाँट के

-शिव छंद-

-शिव छंद- भार एक दश धरे । आय छंद शिव हरे तीसर छठ अउर नौ । भार लघु शिव भर दौ चरण अंत मा सगण । या नहिं त रहय रगण या नहिं त रहय नगण । तब शिव रहय मगन जइसे- जेन कुछु सरूप हे । श्रीहरिमय रूप हे रूप घात प्रभु धरे । धर्म सृष्टि मा भरे धर्म घटय जग  जभे । होय प्रकट प्रभु तभे  धर्म एक सार हे । प्रभु के उपकार हे

-अहीर छंद-

-अहीर छंद- धरे एकादश भार । अंत जगण भर डार बनही छंद अहीर । मन मा धारव धीर जइसे- खोलव ज्ञान कपाट । देखव रूप विराट जेखर ओर न छोर । एको मिलय न कोर जेखर आघु पहाड़ । लागत रहय कबाड़ धुर्रा-कण कस जान । जतका दिखय समान जेखर हाथ हजार । लागय नार-बियार कतका पाँव गिनाँव । कतका बुद्धि लमाँव आँखी मुँह अउ कान । गिनय कोन गुणवान कतका हवय नाक । देखत रहय ताक मुड़ हजारो हजार । कोने पावय पार अतका भरे उजास । मरय सुरूज हर प्यास कुण्डल चमकत कान । लाखों सुरूज समान येही दिव्य सरूप । हे नारायण रूप

-दीप छंद-

-दीप छंद- जेन चरणन चार । धरय जब दस भार नगण गुरू लघु अंत । दीप गढ़ बलवंत दीप गुरतुर होय । मन मा सुख समोय ‘गढ़‘  के करब गोठ । हमन जुरमिल पोठ जइसे- सुन लौ सब सुजान । देके अपन कान हे भगवत पुराण । जेखर अपन मान घीव असन लुकाय । कृष्ण रहय समाय जे लेवय बिलोय । अपन मन ल धोय पाहि जीवन सार । होहि बंधन पार भागवत रसपान । हवय अमृत समान मिलय ज्ञान विराग । मिटय सब अनुराग सत रज तम सरूप । ब्रम्हा हरि हर भूप जनम प्रगति विराम । सब मा हवय ष्याम

-निधि छंद-

-निधि छंद- नौ मात्रा कंत । गुरू लघु ले अंत गढ़ अइसे बंद । बनही निधि छंद जइसे- सुन ऊंखर बात । सूतजी अघात सुन लौं मन लाय । गुरू जेन बताय लइकापन आय ।  शुक जंगल जाय ले बर सन्यास । मन भरे उजास देखय जब बाप । सह सकय न ताप शुक-शुक चिल्लाय । बेटा ल बलाय शुक सुनय न बात । अपन धुन म जात शुक ल रमे जान । पेड़ मन तमाम बोलय सुन व्यास । छोड़व अब आस बोलत हे सूत । शुकजी अद्भूत ओ शुक के पाँव । मैं माथ नवाँव हे नेक सवाल । प्रभु कथा कमाल

-गंग छंद-

-गंग छंद- हे चरण चारे । नौ भार धारे नौ गंग भाखे । गुरू अंत राखे जइसे- मन श्याम राखे । शुक व्यास भाखे सुन एक बेरा । ऋषि करिन डेरा हरि क्षेत्र आके । सब जुरीयाके भगवान पाये । यज्ञे रचाये कर सूत पूजा । विधि कई दूजा सब हाथ जोरे । मन गांठ छोरे शुभ प्रश्न पूछे । मन जेन रूचे हे सूत देवा । ये मान सेवा हस वेद ज्ञाता । अउ पुण्य दाता कलिकाल घोरे । बड़ पाप जोरे विधि कोन अच्छा । जे करय रक्षा ओ कथा दे दौ । ओ रीति दे दौ

-छबि छंद-

-छबि छंद- छबि  ला सवार । आठे मझार चारो समान । छबि के प्रमान जगणे पदांत । चरणे समांत लिखही ‘रमेश‘ । सुमरत गणेश जइसे- हे वेद व्यास । करवँ अरदास मन भर उजास । मोर बड आस लेत प्रभु नाम । करवँ शुरू काम जगत पति श्याम । करय मन धाम देव शुक पाँव । माथे नवाँव महिमा सुनाव । श्रीहरि लखाव शारद मनाँव । मूरत बसाँव मेटव अज्ञान । हृदय भर ज्ञान

-सुगती छंद-

-सुगती छंद- चार चरणा । सात गनना अंत करले । बड़े धरले तीन चारे । भार डारे धरव सुमती । रचव सुगती जइसे- ष्याम राधे । श्याम राधे मोर भारे । तहीं धारे दया कर के । हाथ धर के संग कर लौ । संग कर लौ चरित तोरे । करय भोरे जगत तारे । पाप हारे नाम तोरे । रूप तोरे तोर दाया । मिटय माया श्याम मोरे । हाथ जोरे करवं विनती । सुनव विनती दरस दे दौ । परस दे दौ पूर्ण कर दौ । एक वर दौ

छंद के परिचय

//छंद//  कविता के हर रंग मा, नियम-धियम हे एक । गति यति लय अउ वर्ण ला, ध्यान लगा के देख । आखर गति यति के नियम, आखिर एके बंद । जे कविता मा होय हे, ओही होथे छंद ।। अनुसासन के पाठ ले, बनथे कोनो छंद । देख ताक के शब्द रख, बन जाही मकरंद //छंद के अंग// गति यति मात्रा वर्ण तुक, अउ गाये के ढंग । गण पद अउ होथे चरण, सबो छंद के अंग ।। छंद पाठ के रीत मा, होथे ग चढ़ उतार । छंद पाठ के ढंग हा, गति के करे सचार ।। पढ़त-पढ़त जब छंद ला, रूकथन गा हम थोर । बीच-बीच मा आय यति, गति ला देथे टोर ।। //आखर के भेद// आखर के दू भेद हे, स्वर व्यंजन हे नाम । ‘अ‘ ले ‘अः‘ तक तो स्वर हे, बाकी व्यंजन जान । बाकी व्यंजन जान, दीर्घ लघु जेमा होथे । ‘अ‘ ‘इ‘ ‘उ‘ ह लघु स्वर आय, बचे स्वर दीर्घ कहाथे । लघु स्वर जिहां समाय, होय लघु ओमा साचर । जभे दीर्घ स्वर आय, दीर्घ हो जाथे आखर ।। आखर के गिन मातरा, लघु के होथे एक । दीर्घ रखे दू मातरा, ध्यान लगा के देख । ध्यान लगा के देख, शब्द बोले के बेरा । परख समय ला बोल, लगय कमती के टेरा ।। कमती होथे एक, टेर ले होथे चातर । ‘‘कोदू‘ ‘कका‘ ल देख, गिने हे अपने आखर ।। /