-भव छंद-
-भव छंद-
भव मा भार ग्यारा । जग ला लगय प्यारा
आखिर दीर्घ भरथे । यगण घला भव रथे
जइसे-
व्यास कला रूप हे । अपने मा अद्भूत हे
वो तीनों काल ला। जानय हर हाल ला
अपन दृश्टि खोल के । देखय कुछु बोल के
लोग समय फेर मा । करय धरम ढेर मा
वेद ज्ञान भुलाये । अपन ज्ञान लमाये
मनखे धरय रद्दा । छोड़य काम भद्दा
अइसे वो सोच के । बात सबो खांच के
वेद मन ल बाँट के । अलग करिस छाँट के
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें