-नित छंद- बारह के भार धरत । सुग्घर नित छंद बनत लघु गुरू या नगण धरे । चरणन के अंत करे जइसे- पइसा जग मा बड़का । पइसा जीवन तड़का रिश्ता नाता पइसा । करव बुता जस भइसा नीत-रीत संग घरव । काम-बुता अपन करव बिना काम कहां जगत । दुख पीरा रहय फकत
-निधि छंद- नौ मात्रा कंत । गुरू लघु ले अंत गढ़ अइसे बंद । बनही निधि छंद जइसे- सुन ऊंखर बात । सूतजी अघात सुन लौं मन लाय । गुरू जेन बताय लइकापन आय । शुक जंगल जाय ले बर सन्यास । मन भरे उजास देखय जब बाप । सह सकय न ताप शुक-शुक चिल्लाय । बेटा ल बलाय शुक सुनय न बात । अपन धुन म जात शुक ल रमे जान । पेड़ मन तमाम बोलय सुन व्यास । छोड़व अब आस बोलत हे सूत । शुकजी अद्भूत ओ शुक के पाँव । मैं माथ नवाँव हे नेक सवाल । प्रभु कथा कमाल
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