छंद के परिचय
//छंद//
कविता के हर रंग मा, नियम-धियम हे एक ।
गति यति लय अउ वर्ण ला, ध्यान लगा के देख ।
आखर गति यति के नियम, आखिर एके बंद ।
जे कविता मा होय हे, ओही होथे छंद ।।
अनुसासन के पाठ ले, बनथे कोनो छंद ।
देख ताक के शब्द रख, बन जाही मकरंद
//छंद के अंग//
गति यति मात्रा वर्ण तुक, अउ गाये के ढंग ।
गण पद अउ होथे चरण, सबो छंद के अंग ।।
छंद पाठ के रीत मा, होथे ग चढ़ उतार ।
छंद पाठ के ढंग हा, गति के करे सचार ।।
पढ़त-पढ़त जब छंद ला, रूकथन गा हम थोर ।
बीच-बीच मा आय यति, गति ला देथे टोर ।।
//आखर के भेद//
आखर के दू भेद हे, स्वर व्यंजन हे नाम ।
‘अ‘ ले ‘अः‘ तक तो स्वर हे, बाकी व्यंजन जान ।
बाकी व्यंजन जान, दीर्घ लघु जेमा होथे ।
‘अ‘ ‘इ‘ ‘उ‘ ह लघु स्वर आय, बचे स्वर दीर्घ कहाथे ।
लघु स्वर जिहां समाय, होय लघु ओमा साचर ।
जभे दीर्घ स्वर आय, दीर्घ हो जाथे आखर ।।
आखर के गिन मातरा, लघु के होथे एक ।
दीर्घ रखे दू मातरा, ध्यान लगा के देख ।
ध्यान लगा के देख, शब्द बोले के बेरा ।
परख समय ला बोल, लगय कमती के टेरा ।।
कमती होथे एक, टेर ले होथे चातर ।
‘‘कोदू‘ ‘कका‘ ल देख, गिने हे अपने आखर ।।
//तुक//
जेन शब्द के अंत के, स्वर व्यंजन हे एक ।
एक लगय गा सुनब मा, तुक हो जाथे नेक ।।
गति अउ यति के मेल ले, होथे लय साकार ।
गुरतुर बोली लय बनय, मोहाजय संसार ।।
//गण//
तीन-तीन आखर मिले, आये एक समूह ।
लघु गुरू के क्रम ला कहव, कविता के गण रूह ।।
//छंद के प्रकार//
मात्रा आखर छंद के, होथे जइसे प्रान ।
येखर सेती छंद के, दुई भेद लौ जान ।।
एक भेद हे मातरा, मात्रिक जेखर नाम ।
दूसर हावे आखरा, वार्णिक जेखर नाम ।।
क्रम अउ संख्या वर्ण के, चरण म होय समान ।
तब ओ वार्णिक छंद हे, नही त मात्रिक जान ।।
कविता के हर रंग मा, नियम-धियम हे एक ।
गति यति लय अउ वर्ण ला, ध्यान लगा के देख ।
आखर गति यति के नियम, आखिर एके बंद ।
जे कविता मा होय हे, ओही होथे छंद ।।
अनुसासन के पाठ ले, बनथे कोनो छंद ।
देख ताक के शब्द रख, बन जाही मकरंद
//छंद के अंग//
गति यति मात्रा वर्ण तुक, अउ गाये के ढंग ।
गण पद अउ होथे चरण, सबो छंद के अंग ।।
छंद पाठ के रीत मा, होथे ग चढ़ उतार ।
छंद पाठ के ढंग हा, गति के करे सचार ।।
पढ़त-पढ़त जब छंद ला, रूकथन गा हम थोर ।
बीच-बीच मा आय यति, गति ला देथे टोर ।।
//आखर के भेद//
आखर के दू भेद हे, स्वर व्यंजन हे नाम ।
‘अ‘ ले ‘अः‘ तक तो स्वर हे, बाकी व्यंजन जान ।
बाकी व्यंजन जान, दीर्घ लघु जेमा होथे ।
‘अ‘ ‘इ‘ ‘उ‘ ह लघु स्वर आय, बचे स्वर दीर्घ कहाथे ।
लघु स्वर जिहां समाय, होय लघु ओमा साचर ।
जभे दीर्घ स्वर आय, दीर्घ हो जाथे आखर ।।
आखर के गिन मातरा, लघु के होथे एक ।
दीर्घ रखे दू मातरा, ध्यान लगा के देख ।
ध्यान लगा के देख, शब्द बोले के बेरा ।
परख समय ला बोल, लगय कमती के टेरा ।।
कमती होथे एक, टेर ले होथे चातर ।
‘‘कोदू‘ ‘कका‘ ल देख, गिने हे अपने आखर ।।
//तुक//
जेन शब्द के अंत के, स्वर व्यंजन हे एक ।
एक लगय गा सुनब मा, तुक हो जाथे नेक ।।
गति अउ यति के मेल ले, होथे लय साकार ।
गुरतुर बोली लय बनय, मोहाजय संसार ।।
//गण//
तीन-तीन आखर मिले, आये एक समूह ।
लघु गुरू के क्रम ला कहव, कविता के गण रूह ।।
//छंद के प्रकार//
मात्रा आखर छंद के, होथे जइसे प्रान ।
येखर सेती छंद के, दुई भेद लौ जान ।।
एक भेद हे मातरा, मात्रिक जेखर नाम ।
दूसर हावे आखरा, वार्णिक जेखर नाम ।।
क्रम अउ संख्या वर्ण के, चरण म होय समान ।
तब ओ वार्णिक छंद हे, नही त मात्रिक जान ।।
जेन छंद के हर चरण, मात्रा होय समान ।
संगी ओही छंद ला, सममात्रिक तैं मान ।।
सममात्रिक के भेद हे, येखर सुन गुणगान ।
साधारण बत्तीस तक, आघू दंडक जान ।।
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